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कहने को वो शख्स

कहने को वो शख्स मेरा है पर मेरा नहीं होता
कैसा दरख़्त हू मैं जहाँ चिड़िया का बसेरा  नहीं होता

बहुत चुभती है मुझे मेरी तन्हाई रातों मे
मगर करे तो करे भी क्या रातों मे सवेरा नहीं होता

बहुत बद्दुआए देते हैं उसे उसके पुराने आशिक

मर जाती वो अगर मेरी दुआओं ने उसे घेरा नहीं होता

ये दिल तोड़ने वाले सोचते हैं मैंने उसका सब लूट लिया
मगर जब तक दिया जलता है तब तक अंधेरा नहीं होता

ग़म, सितम ये ग़ज़ल मेरे हिस्से कभी ना आते
ग़र उस रात उसके शहर मे मेरा डेरा नहीं होता

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9 Comments

Abhinav ji

14-Sep-2022 08:42 AM

Very nice

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Punam verma

14-Sep-2022 07:55 AM

Nice

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Wahhhh बहुत ही खूबसूरत रचना और भावनात्मक अभिव्यक्ति

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